अफवाह
देखा तो मैंने भी
गली के उस मोड़ पर
हुआ था कुछ नहीं
उठी थी चाँद हाथें
हुआ था कटु संवाद
पुनः गतिमान जीवन
सब कुछ अनवरत
फिर क्यों शुरू हो गयी
धीरे-धीरे फुसफुसाहट
जो नहीं हुआ था
उसका बखान
मरने-मारने को उतारू
बढती भीड़
छूटने लगे साथ
अब नहीं होगा
अपनों का साथ
भीड़ में से किसी ने
फैला दी थी अफवाह ..........................
देखा तो मैंने भी
गली के उस मोड़ पर
हुआ था कुछ नहीं
उठी थी चाँद हाथें
हुआ था कटु संवाद
पुनः गतिमान जीवन
सब कुछ अनवरत
फिर क्यों शुरू हो गयी
धीरे-धीरे फुसफुसाहट
जो नहीं हुआ था
उसका बखान
मरने-मारने को उतारू
बढती भीड़
छूटने लगे साथ
अब नहीं होगा
अपनों का साथ
फैला दी थी अफवाह ..........................
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें