रविवार, 30 सितंबर 2012

अफवाह 

देखा  तो मैंने भी
गली  के उस मोड़ पर
हुआ था  कुछ नहीं
उठी थी चाँद हाथें
हुआ था  कटु संवाद   
पुनः गतिमान जीवन
सब कुछ अनवरत
फिर क्यों शुरू हो गयी
धीरे-धीरे फुसफुसाहट
जो नहीं हुआ था
उसका बखान
मरने-मारने  को उतारू
बढती  भीड़
छूटने लगे साथ
अब नहीं  होगा
अपनों का साथ
भीड़ में से किसी ने
फैला दी थी अफवाह ..........................

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें