शनिवार, 10 दिसंबर 2011

वह औरत है 
भोर की पहली किरण 
खोल देता है 
रात का आवरण,
पर छुपे हुए रहस्य 
दफन हैं अभी भी 
उसके हृदय में ,
कि रात में वह बेचैन थी ,
सपनो की दुनिया में कैद थी ,
अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए .


उसकी यही दुनिया होती,
पर सुबह होने से पहले ही 
वह पुन: लौट आती है ,
पूर्ववत स्थिति में,
वह जानती है ,
कि  पहली किरण के
दस्तक देने के पूर्व 
उसे समर्पित हो जाना है,
स्वनियोजित कार्यक्रम में 
औरों के सुख के लिए,
खोना है अपनों में,
भले ही ये अपने 
उसके दर्द को न समझे,
पर वो दर्द सहती है,
इन्ही अपनों के लिए 
और खोयी रहती है ,
चूल्हे-चौके में .


सबकी इच्छाओं कि पूर्ति के बीच 
कबकी भूल जाती है वह,
अपनी इच्छाएं , आकान्छाएं,
प्यार और झिड़कियों के बीच 
एक सामंजस्यता,
यही उसकी दिनचर्या है ,
क्योंकि  वह औरत है 
कई रिश्तों में बंधी .