बुधवार, 14 मई 2014


  • भगवान बुद्ध 
सांसारिक   दुखों  द्रवित एक बालक सिध्दार्थ की कठीन जीबन यात्रा , सत्य कि खोज , प्राणि मात्र के प्रति दया एवं करुणा और इस सफर मे मिलने  वाली कठिनाइयों तथा मार्ग की बाधाओं आदि कुछ भी  तो नहीं  रोक पायी। बढ़ते हुए कदम हर उस रस्ते की  ओर स्वयं चल पड़ते जो ज्ञान की  खोज में सहायक होता। सफलता प्राप्ति हेतु असफलता के कटु स्वाद को चखना और मनन करना भी आवश्यक  होता  है। सोना पहले तपता है तभी अपना स्वरुप प्राप्त करता है। बालक सिध्दार्थ ने अपनी यात्रा  में जीवन की समस्त कठिनाइयों को अपनाया परन्तु यदि विचलित होते तो सिध्दार्थ से भगवान बुद्ध नहीं  बन पाते और तब न ही विश्व भारत को अपना  गुरु देश मानता। 
                 सागर से विशाल ह्रदय में आंदोलित करती लहरों के साथ उन्होंने ज्ञान प्राप्ति के मार्ग पर अनवरत चलने का प्रयत्न किया और सफलता ने उनके कदम चूमे। बाधाएं स्वयं रास्ता देकर उनका स्वागत करने लगी और शांत चित्त गौतम ने सभी को अपना साथी बनाते हुए मानव मात्र के  कल्याण हेतु जो मार्ग चुना सिर्फ  उसी पर चलते रहे। 
                 ऐसा नहीं है कि समाज  ने उनपर उँगली नहीं उठायी  होगी क्योकि जब उन्होंने प्रथम बार सुजाता का खीर  ग्रहण किया होगा तब लोगों ने उन्हें लोभी महात्मा  कहा होगा। उनके पवित्र चरित्र पर कीचड़ भी उछाले होंगे। यही परिस्थिति तब भी पैदा हुयी होगी जब उन्होंने आम्रपाली नामक वेश्या का आतिथ्य स्वीकार किया होगा। उनके अनुयायी भी उन्हें पथभ्रष्ट मानने लगे , लेकिन स्थिर चित्त और तेजस्वी विचारधारा के आगे सभी नतमस्तक हो गये। 
                भगवान बुद्ध के चरित्र की विशेषता थी महिलाओं के प्रति सम्मान। उन्होंने अपने समय से आगे अपनी सोँच रखीं , हांलाकि इसमें उनके प्रिय शिष्य आनन्द का  महत्वपूर्ण योगदान था और इतिहास उनका सदैव आभारी रहेगा क्योकि उनके प्रयत्नो से ही भिक्षुणी सन्घ  की स्थापना हुई । हमारा समाज यही मानता रहा कि महिलाओँ को सन्घ  बनानें की  आजादी देना ,समाज को पतन के मार्ग  की ओर ले जाना है लेकिन भगवान बुद्ध ने इस मिथक को तोड़ समाज को एक नवीन संदेश दिया जो नारियों के सम्मान का सूचक आज भी है। 
              आज बुद्ध पूर्णिमा पर भगवान बुद्ध को कोटिशः नमन।  

मंगलवार, 6 मई 2014

सड़क पर तड़पती एक जिंदगी

सड़क पर तड़पती एक जिंदगी


मर गई मानवीयता 
मुँह फेर लेती इंसानियत 
तड़पती, विलखती जिंदगी 
दूर खड़ी तमाशबीन संवेदना 
सिमट कर रह गयी भावना। 

बना लिया है हमने 
एक निश्चित दायरा 
स्वयं से निकलकर 
स्वयं में ही मिलती 
हमारी जिंदगी। 

एक पल के लिये ठहरी 
पुनः गंतव्य की  ओर 
देख भर लिये हमने 
सड़क पर तड़पती 
एक जिंदगी ………… 


सड़क दुर्घटना पर लोगों की सुप्त मानवता से आहत मेरी ये रचना ………