गुरुवार, 16 अगस्त 2012

प्रेम की परिभाषा              
भोर की किरणों 
सा सुन्दर , निर्मल 
ओस की बूंदों सा 
कोमल , स्फूर्तिदायक 
खिलती कली  सी 
मोहक , मासूम 
उपमाओं से अलंकृत 
आँखों की सुन्दर भाषा 
                    यही है प्रेम की परिभाषा 

जो है फिर  नहीं है 
और नहीं है फिर भी है 
रेगिस्तान में पानी की 
एक बूंद के सामान 
धरती और आकाश  के 
मिलन के समान 
अनंत सागर में 
भटकते नाविक की भाँति 
बेचैन , बेबस 
पूर्णतया समर्पित 
फिर भी अतृप्त 
मन की अभिलाषा 
             यही है प्रेम की परिभाषा 

पुष्पों के रस चूसते 
भ्रमर की भाँति मदहोश 
नदी  की शांत जलधारा                               
के सामान  खामोश 
ह्रदय को झंकृत करती                               
सुरों की तान 
एक मधुर अहसास 
बिना शब्दों की भाषा 
                यही है प्रेम की परिभाषा