रविवार, 23 फ़रवरी 2014

                                   ले आयी वसंत 

मुझे लगा वसंत मेरे घर इस बार नहीं आएगा ………मेरी दहलीज  से पार कर जायेगा और मैं यूँ ही मौन बैठी रह जाऊँगी ................... पर हार नहीं मानी ,..........  ले आयी अपने घर हौले से खुशियां भर देने की  उम्मीद के साथ.……… अपने उदास मन में पुनः स्फूर्ति भर देने के लिए ………बोल आयी कोयल को कुहुकने के लिए अपनी अमराइयों में ………जहाँ निकल आयी मंजरियाँ थिरकने को तैयार बैठी बस कोयल की  मधुर तान और  उनका झूम उठना ……… यही तो है जीवन का संचार और मैं बैठ गयी थी मौन ……… बना लिया था एक सीमीत दायरा ................ नहीं सुन पा रही थी बावरे वसंत की आह्ट ………… दरवाजे पर उसकी दस्तक ………… बगीचे में खिले रंगीन फूलों के बीच से सर्र से उसका निकलना ……… और मेरे खुले लम्बे बालों को छेड़ना ………मेरी खोयी हँसी .......... ले आयी वसंत ...................... . ।