मंगलवार, 27 जुलाई 2010

शिव को जल क्यों चढाया जाता है

सावन मास आरम्भ हो चुका है और कवंरियों का जलाभिषेक के लिए गंगा जल ले जाने कि परम्परा शुरू हो चुकी है, लेकिन हम सभी जानते है कि भोलेनाथ को जल ही प्रिय है । जल ही जीवन है और हमारे प्रभु आम जनमानस को यह सन्देश भी देते है कि हमारा जीवन जल के बिना असंभव है। शिव के जल चढाने के बारे में एस कथा प्रसिद्ध है कि समुद्र मंथन के पश्चात निकले विष को देखकर सारे देवता भयभीत हो गए और शिव से रक्षा के लिए प्रार्थना क़ी तब शिव ने सृस्ति क़ी रक्षा के लिए विष का स्वयं पान कर लिया जिससे उनका कंठ नीला हो गया, तभी से वो नीलकंठ कहलाने लगे। विष पीने के पश्चात शिव के शरीर क़ी जलन को शांत करने के लिए उन्हें जल चढ़ाया जाता है। यह परम्परा कब से आरम्भ है कोई नहीं जानता लेकिन कहा जाता है कि प्रभु राम ने भी कांवर से जल यात्रा कर शिव का जलाभिषेक किया था।

सोमवार, 26 जुलाई 2010

सावन mahina और शिव की आराधना

param pita परमेश्वर का शिव swarup sarvjan priya है. प्रभु की आराधना me lin logon ke beec सावन ke पवित्र mas में kisi bhi tarah का bhedbhav nahi rahta है. प्रभु की आराधना का sarvotam rup झारखण्ड राज्य के देवघर जिले में dikhai deta है jahan प्रभु को बाबा बैधनाथ के nam se puja jata है. pure सावन mas में yeh pvitra nagri वृहत आराधना का केंद्र बन jati है. kone kone se log es nagri में aakar swayam को dhnya samjhte है.