ख्वाहिश
खुशियाँ पाने की तमन्ना थी
उड़कर बादलों से मिलने
और कुछ कहने की लालसा थी ।
आसमान से सितारे तोड़कर
किसी के आँचल में
भर देने की इच्छा थी ।
तितलियों से रंग चुराकर
जिन्दगी रंगीन
बनाने की ख्वाहिश थी।

अपने प्रियतम सागर से
मिलने की व्यग्रता थी ।
किसी कली की मुस्कुराहट पर
एक भ्रमर बनकर
गुंजन करने की चाहत थी ।
ऐ जिंदगी! तुझे भरपूर जीने के लिए

कदम बढ़ने की जरुरत थी ।
एक से दो कदम ज्यादा अच्छे होते हैं पर कदम तो फिर भी अपने आप ही उठाना होता है ...
जवाब देंहटाएंजीने के लिए पहल खुद ही करनी चाहिए ...
अच्छे भाव है रचना में ....
वाह ...बहुत ही अनुपम भाव संयोजन ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर....
जवाब देंहटाएं"मैं से हम" में ही तो सार्थकता है जीवन की...प्यार की...
सादर.
...मैं से हम बनकर ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति के साथ सार्थक सन्देश.
सादर
bahut sunder bhaw.....
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ...
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !
हां,स्वीकार भाव और सामंजस्य से भौतिक जीवन ही नहीं,आध्यात्मिक जीवन भी सरल होता है।
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव !
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंacchi bhawanaye hai.....
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