आत्मीयता
सुबह का समय , टहलने वाले लोगों की भीड़ पार्क में अपनी अपनी धुन में हैं। रोज की तरह यंत्रवत जीवन , किसे फिक्र है कौन क्या कर रहा है। सभी अपनी दिनचर्या में मग्न हैं। पार्क में प्रवेश करते ही अनायास एक महिला पर नजर पड़ जाती है , वो मुझे बहुत खास लगती है क्योंकि औरों से थोड़ी अलग है। रोज की दिनचर्या में उसके सिर्फ वो नहीं रहती , उसके साथ रहती है औरोँ के प्रति आत्मीयता। वो खूब जोर जोर हँसती है , लगता है उसके साथ पार्क के सभी पेड़ पौधे भी शामिल हैं ,उसकी सुबह को खुशमिजाज बनाने को। मंडली भी होती उसके साथ लेकिन उसकी नजर अपनी मंडली से बाहर भी होती ,पता नहीं कैसे वो जान जाती सबके मन के भाव और पढ़ लेती सभी चेहरे जो लाख छुपना चाहे उससे। बेहद करीबी बन जाती वो, यही लगाव और आत्मीयता खास बना देता है व्यक्तित्व को।
आत्मीयता हो जाती है उसे पार्क के कोने कोने से। एक भी कागज प्लास्टिक या अन्य कोई गन्दगी उसे रास नहीं आती और स्वयं लगती साफ करने ,उस समय गन्दा करने वाला स्वयं शर्मिंदा हो जाता है। ऐसे में उसके साथ कई हाथ सफाई में जुट जाते हैं। एक ऐसा उदाहरण प्रस्तुत करती है कि पार्क में प्रवेश करते ही अनायस ही आँखे उसे ढूढ़ने लगती है। सबसे प्यारी होती है उसकी ठहाके वाली हँसी ,मानो सारे दर्द ,तकलीफे वो ठहाकों में नीले आसमान को भेज देती है बदले में पा लेती वो शक्ति जो उसे ऊर्जावान बनाये रखती है।
उमर कोई 55 से 60 होगी उसकी लेकिन चहरे पर शिकन भी नहीं , औरो में इतनी आत्मीयता क्यों नहीं होती।? आज परिवार एकल हो रहे है लेकिन मन में दूरियाँ बढती जा रही है बदलती सोच संबंधो को अलग मोड दे रही है। फिर भी कुछ लोग ऐसे होते हैं जो जिंदगी भरपूर जी लेते हैं।
ऐसी महिलाएँ परमात्मा की देवदूत नहीं होतीं क्या.. .
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