रविवार, 23 अक्तूबर 2011

                                       मानवता क्या मर चुकी है ?
मन व्यथित हो गया आज समाचार पढ़ कर. क्या एक पिता इतना क्रूर हो सकता है और वो बहन कैसी है जो अपनी ही बहन का पति उससे छीन ली. यह कहानी नहीं है बल्कि एक सच्ची घटना है जो हमारे ही बीच की है. भागलपुर से थोड़ी ही दुरी पर है सुल्तानगंज, जहाँ से पवित्र  गंगाजल भरकर बाबा वैद्य नाथ को चढ़ता है, यह घटना उसी सुल्तानगंज की है. ये पवित्र नगरी सुनैना की दुखभरी दास्ताँ की गवाह भी बन गयी . सुनैना जो पति से उपेछित होकर माता-पिता के पास आई . माँ तो जल्द ही उसे अकेले छोड़ कर भगवन के पास चली गयी पर उसके पिता ने जो किया वो मानवता और पिता दोनों के नाम पर कलंक है. 
                    मानसिक संतुलन खो चुकी वह पिता के द्वारा १० वर्षों से कैद रही. ऐसा कहा जाता है कि उसकी भाभी के डर से उसके पिता ने उसे बंद रखा पर क्या वो समाज के और लोगों से मदद नहीं ले सकते थे और वो बहन जो सुनैना के पति के साथ ही अपनी गृहस्थी  चला रही है , क्या उसे अपनी बहन की सुध नहीं लेनी चाहिए . रिश्ते जहाँ मर चुके थे तो समाज ने क्या किया ? वह भी तो उसे १० वर्षों से कैद में देख रहा था. आज मिडिया ने बात क्या उठाई कि सबके सब राग आलापने लगे. हर कोई अपने विचार दे रहा है पर पता नहीं उसे लाभ भी मिलेगा या फिर से वो छली जाएगी. 
                 काफी पहले इसी तरह कि घटना सिवान जिले कि लड़की और गोपालगंज जिले कि बहु के साथ भी हुई थी जो ससुराल के अत्याचार से पागल हो गयी थी. उस समय मै भी अपनी बुवा के द्वारा उसकी मदद कि पहल कि थी जिसके बदले मेरी बुवा को उन ससुरालवालों से भला बुरा भी सुनना पड़ा.
               आज पुनः यह घटना सुनकर मानवता को मरते देख बड़ी तकलीफ होती है.
                    

रविवार, 9 अक्तूबर 2011

                                       हमारे त्यौहार और हमारी सोंच

काफी वयस्तता के बीच नवरात्री की धूम रही और अंत में माँ दुर्गा की अश्रुपूर्ण विदाई के बाद का खालीपन , यही है जिन्दगी का रंग . पुनः एक स्फूर्ति के साथ दीपावली की तैयारी में व्यस्त हो जाना और जीवन को भरपूर जीना. भारतीय त्योहारों की विशेषता अनोखी है. हमारे त्यौहार हमें जोड़ते हैं और अपने देश की परम्परा को अगली पीढ़ी तक पहुँचाने  के लिए सचेत भी रहते हैं . रावन को जलाने की एक परम्परा चल रही है जो अगली पीढ़ी तक कायम रहेगी और आगे भी जाएगी. हम जिन बुराइयों को समाप्त करना चाहते हैं उसे  रावन के माध्यम से मर डालने की कोशिश करते हैं. 

                       मजे की बात ये है कि परम्पराओं के माध्यम से हम राजनीती से लेकर सामाजिक बुराइयों तक कटाच करते हैं और समाज के सामने सच प्रस्तुत करते हैं. हमारा ये प्रयास अवश्य ही सुधारात्मक होता है और इसके पीछे यह मनसा होती है कि समाज में बदलाव आये. 

                        आब हम लच्क्ष्मी माता  के आगमन कि तैयारी करेंगे और प्रकाश के द्वारा जीवन का अंधकार भगाने का प्रयत्न करेंगे . ईश्वर करे इस त्यौहार में सबके जीवन में प्रकाश फैले.