बुधवार, 25 दिसंबर 2013

पापहारिणी सरोवर और मंदार पर्वत का अद्भुत स्वरुप


हाल ही में मैं किसी काम से बांका जिला जो भागलपुर से लगभग पचास किलोमीटर है, गई थी।  यही पर बौसी नामक स्थान पर मंदार  पर्वत और पापहारिणी सरोवर है। ऐसी मान्यता है कि इस सरोवर में स्नान करने से सभी पाप धूल जाते हैं। सोंची मैं भी अपने  अबतक के सारे पाप धो ही लूँ। मेरे पति बोले लगता है आगे पाप करने का इरादा नहीं है................. मैं  बोली अब तक के पाप धो लेती हूँ आगे जब मुझसे पाप होगा तो फिर चले आयेंगे क्योंकि साधु लोग जब पाप करने से नहीं चूकते तो हम आम इंसान कैसे बचे रहेंगे , लेकिन सबसे मुख्य बात ये थी कि जिस सरोवर में हम अपना पाप धोने वाले थे वो इतना गन्दा था कि हाथ धोने का भी मन नहीं कर रहा था। किसी तरह जल हाथ में लेकर अपने ऊपर छिड़क लिए और अपने पाप अपने साथ वापस अपने घर लेते आये। 
                 दुःख इस बात का होता है कि प्रकृति ने जो उत्कृष्ट उपहार हमें प्रदान किया है उसे भी हम नहीं संभाल के रख रहे हैं , आखिर हम  इंसानों के कारण  ही ये सरोवर अपनी किस्मत पर रो रहा है। इतिहास की वो गाथा यहाँ सुप्त है जो सृष्टि की  रचना को स्पष्ट करती है और हमारे अस्तित्व का कारण  है। यही पर समुन्द्र मंथन हुआ था जिसका गवाह मंदार  पर्वत मौन रहकर भी कहानी को प्रमाणस्वरूप सुना रहा है।
                       समुन्द्र मंथन की कथा को प्रदर्शित करती झांकी 
 मंदार पर्वत की कहानी कहने से पहले मैं पापहारिणी सरोवर के मध्य में स्थित लक्ष्मी-नारायण मंदिर की  खूबसूरती दिखाना चाहती हूँ क्योकि यह  मंदिर और इसमें प्रतिष्ठित प्रतिमा अप्रतिम है और मैं बहुत ही प्रभावित हुई।  
                              लक्ष्मी - नारायण मंदिर 


                                  लक्ष्मी नारायण मंदिर 


अब मंदार पर्वत की  विशेषता बतलाती हूँ क्योकि इतिहास यहाँ प्रमाण के रूप में मौजूद है। समुन्द्र मंथन के समय यही मंदार मथानी बना था और शेषनाग इसके चारो ओर लिपटे हुए थे। आज भी ये निशान मंदार पर मौजूद हैं। 
                      मंदार पर्वत पर शेषनाग के लिपटने का निशान 


समुन्द्र मंथन से ही अमृत और विष दोनों प्राप्त हुए थे। विष तो भगवन शिव ने ग्रहण किया लेकिन अमृत के लिए देवता और दानव दोनों में  संघर्ष हुआ था और छल से देवताओं ने अमृत प्राप्त किया था। समुन्द्र मंथन के समय देवता लोग शेषनाग के पूंछ की  ओर  थे और दानव लोग मुख की ओर। ऐसी बुध्दिमानी देवताओं ने शेषनाग के विष से बचने के लिए किया था। 
             यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता मन मोह लेती है। बहुत ही मनोरम दृश्य है  साथ ही इतिहास की एक घटना का गवाह भी अतः मन में उत्सुकता थी इसे देखने की । सबसे ऊँची चोटी पर जैन मंदिर है जहाँ सीढ़ियों से जा सकते हैं।यहाँ भ्रमण का कार्यक्रम अद्भुत रहा। 


16 टिप्‍पणियां:

  1. मंदार पर्वत पर शेषनाग के लिपटने का निशान कितना स्पष्ट है...अद्भुत ! यात्रा विवरण भी अत्यंत रोचक है..शेष चित्र भी सुंदर हैं...

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  2. badi khushi hui sandhya jee ..mai bhi bahut dinon se wahan jana chah rahi hoon par nahi ja paai par ab awashay jaungi ..thanks....

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  3. बहुत ही रोचक यात्रा विवरण.......चित्र भी सुंदर हैं...

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  4. रोचक .... कितना इतिहास समेटे हैं ये प्राकृति अपनी गोद में ...
    मंदार पर्वत के चित्र उनका विवरण ... मन को मोह रहा है ...
    नव वर्ष की मंगल कामनाएँ ...

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  5. सुंदर भ्रमण कराने के लिए आभार।

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  6. रमणीक स्थल है। काश हम लोग इन पवित्र स्थानों को और भी बेहतर बना पाएँ।

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  7. खूबसूरत लक्ष्मी नारायण मंदिर और बहुत ही रोमांचक शेषनाग का निशान बहुत सुंदर प्रस्तुति ..

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  8. बहुत सुंदर स्थल है..... रोचक वर्णन

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