पहचान
नदी में चंचलता थी
नवयौवना सी तीव्रता थी
इतराती , बलखाती
प्रेयसी बन उतावला थी
सागर की व्यग्रता
उसे बार - बार खीचती
उठती - गिरती लहरों से
आमंत्रित करती
नदी की चाल और तेज होती
धाराएँ बदल वो दौड़ लगाती
अपनी ही धुन में भागती
सागर की आगोश में जा गिरती
सागर से मिल नदी
मौन हो गयी
प्रेम में पागल थी
प्रेम में विलीन हो गयी
पर अब भी नदी बेचैन थी
सागर के दिल में कैद थी
आकुलता - व्याकुलता
आंदोलित मन, नदी की चाहत
अपनी पहचान की तड़प
क्योंकि नदी अपनी पहचान
सागर से मिल खो चुकी थी|
नदी में चंचलता थी
नवयौवना सी तीव्रता थी
इतराती , बलखाती
प्रेयसी बन उतावला थी
सागर की व्यग्रता
उसे बार - बार खीचती
उठती - गिरती लहरों से
आमंत्रित करती
नदी की चाल और तेज होती
धाराएँ बदल वो दौड़ लगाती
अपनी ही धुन में भागती
सागर की आगोश में जा गिरती
सागर से मिल नदी
मौन हो गयी
प्रेम में पागल थी
प्रेम में विलीन हो गयी
पर अब भी नदी बेचैन थी
सागर के दिल में कैद थी
आकुलता - व्याकुलता
आंदोलित मन, नदी की चाहत
अपनी पहचान की तड़प
क्योंकि नदी अपनी पहचान
सागर से मिल खो चुकी थी|
सुन्दर भाव एवं अभिव्यति भी .....!!
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें .
बहुत खूब,सुंदर लाजबाब अभिव्यक्ति,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST : अपनी पहचान
किसी सूरत में चैन नहीं....
जवाब देंहटाएंयही तो जीवन है.
सुन्दर रचना.
अनु
बहुत खूब,सुंदर प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंसुंदर चित्र और गहरे भाव !
जवाब देंहटाएंनदी की तो नियति ही यही थी ... उसकी चाह भी यही थी .. फिर भी अपनी पहचान को तडपती है ... शायद प्रेम को पूर्ण रूप से नहीं पहचान पाती ...
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार१६ /७ /१३ को चर्चामंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां स्वागत है
जवाब देंहटाएंसही अभिव्यक्ति ..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंक्या बात
बहुत सुन्दर भाव का लाजवाब अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंlatest post सुख -दुःख
अपनी पहचान की तड़प
जवाब देंहटाएंक्योंकि नदी अपनी पहचान
सागर से मिल खो चुकी थी|
भावनाओं का अनूठा संगम ...........
निसंदेह साधुवाद योग्य लाजवाब अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंआंदोलित मन, नदी की चाहत
जवाब देंहटाएंअपनी पहचान की तड़प
क्योंकि नदी अपनी पहचान
सागर से मिल खो चुकी थी|
BAHUT HI SUNDAR RACHANA TIWARI JI ......AABHAR.
बहुत सुन्दर भाव का लाजवाब अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंक्योंकि नदी अपनी पहचान
सागर से मिल खो चुकी थी| -----
भाव प्रधान बहुत सुंदर रचना
बधाई
आग्रह है
केक्ट्स में तभी तो खिलेंगे--------
अति सुन्दर कृति....
जवाब देंहटाएंखुबसूरत प्रकृति को शब्दों में बांधती रचना...
जवाब देंहटाएंखुबसूरत चित्र भी ......
सागर से मिल नदी
जवाब देंहटाएंमौन हो गयी....
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अपना सब कुछ खोकर...हम सब की जिन्दगी भी तो ऐसी ही है ..
बढ़िया लिखती हैं आप ....
नदी अपनी पहचान सागर से मिलकर कहो चूँकि थी ,
जवाब देंहटाएंहम सभी नदिया जैसे ही हैं ,जिनका लक्ष्य ही सागर से मिलना हैं |
आध्यत्म भरी पंक्तिया ,आभार
एक शाम संगम पर {नीति कथा -डॉ अजय }
बहुत सुंदर रचना, साझा करने के लिए बहुत बहुत आभार
जवाब देंहटाएंयहाँ भी पधारे
http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_29.html
बहुत सुन्दर रचना...सीधे दिल को छू लेती है..
जवाब देंहटाएंutavla ke sthan pr utavli jyada behtr rhega.
जवाब देंहटाएंsadhuvaad.
sunder abhivyakti. prem ka arth hi hai atript rahna
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