शनिवार, 15 जून 2013

कुछ किस्से ................

                                          कुछ किस्से ..................

काफी दिनों के बाद अपने ब्लॉग पर आ रही हूँ । शादियों का मौसम और रिश्तेदारों के यहाँ अगर नहीं जाएँ तो भला कौन ताने सुने वो भी खास रिश्तेदार हों तो और भी जरुरी हो जाता है शादी में शामिल होना । यही नहीं बहुत सारे काम भी जिम्मेदारी पूर्वक निभाने होते हैं । व्यस्त तो मै  अवश्य रही लेकिन कुछ मजेदार किस्से भी बटोर लायी हूँ  आप सभी के लिए।
                   पहला किस्सा ये रहा कि एक साइंटिस्ट दुल्हे के पिता ने मोटी रकम और महँगी गाड़ी के साथ दुल्हन को अपने घर लाये । खूब धूम-धाम से शादी हुई । शान था अधिक दहेज़ लेने का और बेटे की ऊँची कीमत का । दुल्हन घर तो आ गयी लेकिन शादी का जोड़ा खोल आग के हवाले कर दी । सिन्होरा जो सुहाग के सबसे प्रमुख  निशानी सिंदूर रखने वाला होता है , उसको भी आग के हवाले करने जा रही थी तभी लड़के की माँ की नजर पड़ी और वो उसे झपट कर छीन ली । बात यही तक नहीं रही , अब दुल्हन अपने कपडे खोलने लगी वो भी आँगन में जहाँ हलवाई  खाना बना  रहा था । आनन्-फानन में लड़की पर काबू पाया गया और उसे कमरे में बंद कर उसके घर फोन किया गया , पता चला उसकी दवा का असर खत्म हो गया था और इसे रोकने के लिए दवा देना जरुरी था । लड़की की हकीकत सामने आते ही लड़के की माँ रोने-पीटने लगी , सभी लोग हैरान हो गए । वास्तव में बिना किसी को बताये लड़की वालों ने धोखा देकर शादी कर दी और दहेज़ के लोभ ने लड़के वालों के आँखों पर पट्टी लगा रखी थी । बेचारा लड़का अपनी किस्मत को कोसता रह गया क्योंकि लड़की वालों ने उसे दहेज़ केस में फसाने की धमकी भी दे डाली है । वैसे गाँव के लोगों को यही बताया गया कि लड़की के ऊपर बुरी साया का प्रकोप है ।
                दूसरा किस्सा भी दहेज़ का ही है लेकिन लड़का और लड़की दोनों के परिवार संतुष्ट हैं बस बाराती वालों का स्वागत अच्छा से लड़की वालों ने नहीं किया क्योकि दहेज़ में इतनी रकम दे चुके थे की उनके पास पैसों की कमी हो गयी थी । मेरे विचार से इतना भी लड़की वालों को नहीं सताना चाहिए ।
             एक शादी ऐसी भी हुई  लड़का और लड़की दोनों के घरवालों ने मिलजुलकर खर्च किया , बहुत ही अच्छी शादी लगी मुझे ,जिसमे दहेज़ लेने वाले यदि शामिल हुए होंगे तो जरुर सीख  लेंगे कि बिना दहेज़ की शादी कितनी खुशीपूर्वक होती है । 
                हमारा समाज हमेशा बदलाव का पक्षधर रहा है और बहुत सारे लोग अब अपनी बेटियों की परवरिश बेटों की तरह कर रहे है साथ ही लड़के वाले भी दहेज़ के पुराने रिवाजों से निकलकर लड़की के परिवार को भी खूब महत्त्व दे रहे है लेकिन एक बात अक्सर सुनने को मिलती है ---------हम लड़के वाले है............तो लड़की वालों को झुक कर रहना चाहिए .........इत्यादि उलाहने और रिवाज आज भी कायम है , साथ ही लड़की जब पूरे  साजो-सामान के साथ ससुराल आती है तो उसका सम्मान भी खूब होता है । काश ! ये सब बदलाव भी हो .............

7 टिप्‍पणियां:

  1. हाँ इस कुप्रथा का अंत अब तो हो जाना चाहिए.क्यूंकि आज तो ज़्यादातर जोड़ों में दोनों पढ़े लिखे और कमाने वाले हैं....बल्कि लड़कियां तो घर भी सम्हालती हैं...

    आपके संस्मरण से सीख लें सभी.....

    अनु

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  2. काश लोग अपनी सोच को बदलें । दहेज लोभी वाली घटना से कोई सबक लें ।

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  3. दहेज भी मजेदार चीज़ है जिसके पास जितना ज्यादा पैसा है उसे उतना ही ज्यादा दहेज चाहिये. अगर दो परिवारों का मिलन होना है जो दोनों की ही जरूरत है तो वह प्रेम आपसी समझ से क्यों न हो.

    बहुत सुंदर प्रसंग.

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  4. बदलाव के लिए अपने आप से ही करनी होती है ... खुद को मजबूत करना होता है विशेषतः लड़के को ... वो चाहे तो सब कुछ हो सकता है ...

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  5. आइए हम दुआ करें कि ये समस्याएं जल्द समाज से दूर हों...सुन्दर और विचारणीय लेख...बहुत-बहुत बधाई...

    @मानवता अब तार-तार है

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  6. I really liked the post..Now the scientist will have to think of some experiment to cure his wife!

    nicely written!

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  7. दहेज का प्रश्न आते ही लड़के के पिता की मूँछें चौड़ी होने लगती हैं ।

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