शनिवार, 20 अप्रैल 2013

दर्द को बिखरने न दो

दर्द को बिखरने न दो   

 


रोक लो आँसुओं  को
बादल बन बरसने न दो
दर्द को अकेले ही पी लो
बाँट कर बिखरने न दो ।

यादों के झरोखों से
चुन लो वो ख़ुशी
पायी थी जो कभी
उसे ही भरपूर जी लो
सिमटने न दो ।

छिटकती चांदनी को
फैला आँचल समेट  लो
तिमिर की ओढ़नी में सजा
थोड़ी देर सहेज लो
निकलने न दो ।

उम्मीदों से भरे जीवन को
परखो कठिनाइयों से
पर न भूलो अपने अस्तित्व को
सघर्षरत पहचान बना लो
मिटने न दो ।  

दर्द को महसूस करो
थोड़ी देर जी लो
खुद को उसमे उलझने न दो
 दर्द को बिखरने न दो ।  



21 टिप्‍पणियां:

  1. उम्मीदों से भरे जीवन को
    परखो कठिनाइयों से
    पर न भूलो अपने अस्तित्व को
    सघर्षरत पहचान बना लो
    मिटने न दो ।
    संघर्ष ही जीवन है...बहुत सुन्दर भाव...

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  2. बहुत बढ़िया..सुन्दर प्रस्तुति..

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  3. धैर्य ही जीवन संवार देता है ....निखर देता है ...
    बहुत सुन्दर भाव ...!!

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  4. उम्मीदों से भरे जीवन को
    परखो कठिनाइयों से
    पर न भूलो अपने अस्तित्व को
    सघर्षरत पहचान बना लो
    मिटने न दो -----वाह जीवन का सच
    सुंदर प्रस्तुति

    आग्रह हैः मेरे ब्लॉग में सम्मलित हों

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  5. wahh.. kya khoob .. umda lekhan .. Badhai
    दर्द को महसूस करो
    थोड़ी देर जी लो
    खुद को उसमे उलझने न दो

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  6. दर्द बिखर गया तो तमाशा बन जाएगा ...
    इसको अमृत बम लो ... खुद ही जी लो ...

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  7. वाह..
    छिटकती चांदनी को
    फैला आँचल समेट लो
    तिमिर की ओढ़नी में सजा
    थोड़ी देर सहेज लो
    निकलने न दो ।

    बहुत कोमल भाव संध्या जी...
    अनु

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  8. दर्द को महसूस करो
    थोड़ी देर जी लो
    खुद को उसमे उलझने न दो
    दर्द को बिखरने न दो ।---
    बहुत सुन्दर भाव
    डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
    latest post बे-शरम दरिंदें !
    latest post सजा कैसा हो ?

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  9. बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति,आभार.

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  10. दर्द को महसूस करो
    थोड़ी देर जी लो
    खुद को उसमे उलझने न दो
    दर्द को बिखरने न दो ।
    डॉ संध्या जी जिन्दगी के सच को उकेरती हौसला देती सुन्दर रचना ...
    भ्रमर ५

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  11. अश्क़ को झरने न दो
    तिमिर को पसरने न दो
    सुंदर संदेश मिल रहा
    दर्द को बिखरने न दो....

    वाह !!!!!!!!!!!!!!

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  12. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति "रोक लो आंसुओं को .बदलो को बरसाने दो ,तिमिर की ओढ़नी में चांदनी को बिखरने दो, ........

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  13. दर्द को महसूस करो
    थोड़ी देर जी लो
    खुद को उसमे उलझने न दो
    दर्द को बिखरने न दो ।

    जिंदगी की हकीकत को स्वीकारती सुंदर कविता.

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  14. बहुत खूब, सुन्दर प्रस्तुति. उत्तम भाव..

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