मंगलवार, 8 जनवरी 2013

इतिहास की धरोहर विक्रमशिला विश्वविद्यालय के अवशेष

                इतिहास की  धरोहर विक्रमशिला विश्वविद्यालय के अवशेष

भारत प्राचीन काल से ही शिक्षा के प्रमुख केंद्र के रूप में विख्यात रहा है । प्राचीन तक्षशिला विश्वविद्यालय के समान ही विक्रमशिला विश्वविद्यालय का इतिहास रहा है । भागलपुर (बिहार ) जिले  से कुछ ही  दूरी पर अन्तिचक  नामक स्थान है और यहीं पर है प्राचीन विक्रमशिला विश्वविद्यालय के अवशेष । भारत यदि विश्व गुरु बना है तो उसका श्रेय यही विश्वविद्यालय रहा है ।
                 भले ही इतिहास  यहाँ  सो रहा है  लेकिन इसका हर कोना  प्रसिद्ध बौद्ध दार्शनिक नागार्जुन , अतिश , रत्नव्र्ज आदि  के व्याख्यानों  की कहानी  कह  रहा है । विदेशों से विद्यार्थी ज्ञान की प्राप्ति  हेतु यहाँ पधारे  और बहुत   कुछ  धरोहर के रूप में यहाँ से ले गए । तिब्बत , चीन , नेपाल , श्रीलंका आदि देश के विद्यार्थी यहाँ शिक्षा प्राप्त करने हेतु आते थे ।  
 
      इसकी आधारशिला आठवीं सदी  में  पाल  शासक धरमपाल ने  रखी थी । अनेकों विहार  का निर्माण उसके द्वारा यहाँ करवाया गया जहाँ विद्वानों के व्याख्यान होते थे ।  महाविहार का  प्रबंध महास्थविरों की एक परिषद् करती  थी । राजकीय अनुदान से सम्पूर्ण प्रबंध किया जाता था ।

                     महा विहार में प्रवेश हेतु विद्यार्थियों को  प्रवेश  परीक्षा उतीर्ण  करना पड़ता  था । यह परीक्षा  6   द्वार पंडितों   द्वारा  ली   जाती  थी  जिनके नाम मिलते हैं - पूर्वी द्वार  आचार्य रत्नाकर शांति , पश्चिमी द्वार वागीश्वरकीर्ति , उतरी द्वार  नरोपा , दक्षिणी द्वार प्रज्ञाकरमति , प्रथम मध्य द्वार कश्मीर के रत्न्व्र्ज तथा द्वितीय   मध्य द्वार गौड़ के ज्ञान श्री मित्र ।  संभवतः यहाँ 6 महाविहार थे । प्रत्येक के अलग द्वार पंडित होते थे । द्वार पंडित के पद पर बहुत ही विद्वान आचार्य को  नियुक्त किया  था।  प्रत्येक महाविहार में शिक्षकों की संख्या 108  होती थी । इस तरह वहां लगभग 648 शिक्षक थे और छात्र भी हजारों की संख्या में थे ।
                      यहाँ एक  विशाल  पुस्तकालय था जिसे मुस्लिम आक्रान्ताओं ने  नष्ट  कर दिया  और  हम अपनी  विरासत  को नहीं  बचा सके ।  यहाँ के खंडहरों में जो कहानी छुपी है वो हमारे गौरवपूर्ण अतीत को स्पष्ट करती है । हमारी  शिक्षा व्यवस्था कितनी समृद्ध थी इसकी कहानी यहीं आकर ज्ञात हो सकती है । यह  महाविहार   दर्शन ,  न्याय, व्याकरण , तंत्र विद्या का प्रमुख केंद्र  था । बौद्ध धर्म  की वज्रयान  शाखा की शिक्षा मुख्य रूप से यहाँ दी जाती थी । वज्रयान शाखा का  उद्भव  यहीं हुआ था और  यहीं  से विश्व में फैला । चित्रकला  की  शिक्षा भी  यहाँ  दी जाती थी ।
                           यहाँ पर छात्रों को प्रमाण - पत्र भी प्रदान किया जाता था और इसके लिए   उत्सव  का   आयोजन किया जाता था । इस अवसर  पर पाल राजा भी उपस्थित होते थे और छात्रों को पुरस्कृत करते थे । यही  के  आचार्य  आतिश  ने तिब्बत में जाकर बौद्ध धर्म की स्थापना की और  यहाँ के धर्म गुरु के रूप में ये आज भी पूज्य हैं, चुकि ये विक्रमशिला विश्वविद्यालय  से  गए थे इसलिए तिब्बत के लोग यहाँ की भूमि को पूज्य मानते हैं ।  तिब्बती भाषा की शिक्षा यहाँ जाती थी तथा  कई संस्कृत ग्रंथों का  तिब्बती भाषा में अनुवाद हुआ था। ये ग्रन्थ आज भी तिब्बत में विद्यमान हैं ।
                          यहाँ  के अवशेष आज भी अपने  वैभवशाली अतीत  की कहानी बता रहे हैं ।

21 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर चित्रों से सुसज्जित बेहतरीन और मनमोहक प्रस्तुति.

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  2. बहुत बढ़िया पोस्ट...
    अनमोल जानकारी.

    आभार
    अनु

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  3. बहुत ही अच्छी जानकारी दी है..
    आभार...
    :-)

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  4. ज्ञान का खजाना छिपा हुवा था भारत के हर भूखंड में ... आज उनकी कीमत नहीं .. चिंतन की दिशा मोड्नी होगी समाज की ...

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  5. bahut achhi jankari ...
    http://ehsaasmere.blogspot.in/2013/01/blog-post.html

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  6. अच्छी जानकारी देता लेख... तक्षशिला के बाद विक्रमशिला अच्छा लगा...

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  7. ऐतिहासिक जानकारी लिए सुंदर लेख ....

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  8. ऐतिहासिक जानकारी लिए सुंदर लेख ....

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  9. भारत के गौरवशाली अतीत की झांकी कराती जानकारी भरी सुंदर पोस्ट ! आभार!

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  10. बढिया जानकारी, सार्थक ब्लाग लेखन।

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  11. उम्दा जानकारी...शुभकामनाएँ..

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  12. बहुत ही अच्छी जानकारी दी है आपने ,,,,
    आभार आपका !

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  13. ऐतिहासिक धरोहर के बारे में महत्वपूर्ण जनकारी प्रदान करने हेतु आभार..

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