मेरे भैया
भेज दी है मैंने प्यार की डोर
बाँध कर यादों के खजाने के साथ
सजेगी जब तुम्हारी कलाई
इस डोर से
याद आएगी बहन
पलकों की कोर में
जब आंसू चमक उठेंगे
प्यार के रूप में
तब जी उठेगा बचपन
एक दिन के लिए
मेरे भैया
रोक लेना उस पल को
थोड़ी देर के लिए भी
कहीं दूर बैठी ये बहन भी
जी लेगी उस पल को जीभर के
संजो लेगी अपनी थाती के रूप में
अगले राखी तक ..............
भावमय करती प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंइस स्नेहिल पर्व की अनंत शुभकामनाएं
शुभकामनाएं आपको भी
हटाएंबहुत ही सुन्दर रचना.... सचमुच जो बहने रक्षाबंधन के दिन अपने भाइयों से दूर होती है वो उस दिन ऐसी ही भावनाओं से भरी होती हैं... मैंने भी मम्मी को हर रक्षाबंधन पर देखा है कभी अपने भाइयों को फ़ोन करते और कभी उनके फ़ोन का इंतज़ार करते....
जवाब देंहटाएंधन्यवाद रुनझुन
हटाएंमन को छू गई ये पंक्तियाँ ... भाई बहन का प्रेम जैसा पावन बंधन नहीं कोई और ...
जवाब देंहटाएंरक्षा बंधन की हार्दिक बधाई ...
धन्यवाद.............आपको भी हार्दिक बधाई ...
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…तब जी उठेगा बचपन
एक दिन के लिए
बहुत संवेदनशील !
आदरणीया डॉ.संध्या तिवारी जी
नमस्कार !
आपकी इस रचना सहित कुछ अन्य पुरानी पोस्ट्स पर लगी कविताएं पढ़ कर अच्छा लगा …
आभार ! और हार्दिक शुभकामनाएं !
मंगलकामनाओं सहित…
-राजेन्द्र स्वर्णकार
धन्यवाद.....आपने पुराने पोस्ट को भी पसंद किया
हटाएंसार्थक और सामयिक पोस्ट , आभार.
जवाब देंहटाएंकृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें , आभारी होऊंगा .
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना...
जवाब देंहटाएंसुंदर भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति! मेरे नए पोस्ट "छाते का सफरनामा" पर आपका हार्दिक अभिनंदन है। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंआँखें भर आई आपकी रचना पढकर. समय के साथ सारे रिश्ते दूर हो जाते हैं, जिनके साथ पले बढ़े वे सब छूट जाते हैं. भावमय प्रस्तुति, बधाई.
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