बुधवार, 1 अगस्त 2012

मेरे भैया




मेरे भैया 
        भेज दी है मैंने प्यार की डोर
        बाँध कर यादों के खजाने के साथ 
         सजेगी जब तुम्हारी कलाई 
                                              इस डोर से 
याद आएगी बहन 
पलकों की कोर में 
जब आंसू चमक  उठेंगे 
प्यार के रूप में 
तब जी उठेगा बचपन 
एक दिन के लिए 

                        मेरे भैया 
रोक लेना उस पल को 
थोड़ी देर के लिए भी 
कहीं दूर बैठी  ये बहन भी 
जी लेगी उस पल को जीभर  के 
संजो लेगी अपनी थाती के रूप में 
अगले राखी तक ..............



13 टिप्‍पणियां:

  1. भावमय करती प्रस्‍तुति ...
    इस स्‍नेहिल पर्व की अनंत शुभकामनाएं

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  2. बहुत ही सुन्दर रचना.... सचमुच जो बहने रक्षाबंधन के दिन अपने भाइयों से दूर होती है वो उस दिन ऐसी ही भावनाओं से भरी होती हैं... मैंने भी मम्मी को हर रक्षाबंधन पर देखा है कभी अपने भाइयों को फ़ोन करते और कभी उनके फ़ोन का इंतज़ार करते....

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  3. मन को छू गई ये पंक्तियाँ ... भाई बहन का प्रेम जैसा पावन बंधन नहीं कोई और ...
    रक्षा बंधन की हार्दिक बधाई ...

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  4. …तब जी उठेगा बचपन
    एक दिन के लिए

    बहुत संवेदनशील !

    आदरणीया डॉ.संध्या तिवारी जी
    नमस्कार !

    आपकी इस रचना सहित कुछ अन्य पुरानी पोस्ट्स पर लगी कविताएं पढ़ कर अच्छा लगा …
    आभार ! और हार्दिक शुभकामनाएं !

    मंगलकामनाओं सहित…

    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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    1. धन्यवाद.....आपने पुराने पोस्ट को भी पसंद किया

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  5. सार्थक और सामयिक पोस्ट , आभार.
    कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें , आभारी होऊंगा .

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  6. बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना...

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  7. बहुत अच्छी प्रस्तुति! मेरे नए पोस्ट "छाते का सफरनामा" पर आपका हार्दिक अभिनंदन है। धन्यवाद।

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  8. आँखें भर आई आपकी रचना पढकर. समय के साथ सारे रिश्ते दूर हो जाते हैं, जिनके साथ पले बढ़े वे सब छूट जाते हैं. भावमय प्रस्तुति, बधाई.

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