शनिवार, 12 मई 2012

          व्यथा 

 एक दर्द है  छिपा हुआ 
टीस उठती है बार-बार 
वेदना होती है भीतर तक 
स्पष्ट लकीरें चेहरे पर 
बाहर आने को फड़फड़ाते होठ 
पर गिर पड़े दो बूंद आंसू के 
और  बह गए दर्द 
पुन : दबी रह गयी व्यथा ।

23 टिप्‍पणियां:

  1. मर्मस्पर्शी ...व्यथा ....!!
    बहुत सुंदर रचना ...!!
    शुभकामनायें ....!

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  2. सच है दर्द दिल में होता है आँखे रोती है....और मन शान्त.....

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  3. बाहर आने को फड़फड़ाते होठ
    पर गिर पड़े दो बूंद आंसू के
    और बह गए दर्द
    पुन : दबी रह गयी व्यथा ।

    सुंदर बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति,......

    MY RECENT POST ,...काव्यान्जलि ...: आज मुझे गाने दो,...

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  4. बहुत सुंदर

    मां मेरे गुनाहों को कुछ इस तरह से धो देती है
    जब वो बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है।

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  5. दर्द दिल में होता है
    हर शब्‍द बहुत कुछ कहता हुआ, ... शुभकामनायें ।

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  6. व्यथा की कहानी ... दर्द का एहसास ...
    मार्मिक रचना है ...

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  7. दबी रह गयी व्यथा
    आह !
    मार्मिक लिखा …
    डॉ.संध्या तिवारी जी

    आपकी कुछ पुरानी पोस्ट्स भी देखी …

    चलती रहे लेखनी अनवरत …


    हार्दिक शुभकामनाएं !
    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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  8. bahut acchi abhiwaykti dil ko choo gai is page ki sabhi rachnayen padhi....

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  9. वो जो तूफां है
    तोड़ता है किनारा
    बिना विध्वंस के!

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  10. बहुत मर्मस्पर्शी प्रस्तुति...

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