गुरुवार, 26 अप्रैल 2012

यादें धुंधली सी

यादें धुंधली  सी 

एक याद धुंधली सी........
बचपन कीअठखेलियों से
टकराकर लौटती हुई, 
खेतों की पगडंडियों से 
गुजरती हुई..............
कोयल की कुक से 
 सुर मिलाती हुई .......
अभी भी सिमटी है 
मन के किसी कोने में।

बड़े से आँगन में 
मिल बैठ  बातें करते
रिश्ते और नाते 
इन सब के बीच  
बचपन किसी के भी 
आँगन से निकलकर 
किसी के भी गोद में 
अधिकार से बैठता 
कुछ रिश्ते अपनाता।


समय ने करवट ली 
रिश्ते सिमटने लगे 
साथ में सिमटने लगी 
खिड़कियाँ, दरवाजे और आँगन 
एक निश्चित दायरा 
बचपन अब इसी में घूमता 
सोफे से पलंग तक
टीवी से फ्रिज तक
आँखे खोयी रहती 
गेमों की दुनिया में 
अब जीना है 
बचपन को सीमा में ।


बस्तों के बोझों से 
झुकते हुए कंधे 
न ममता की लोरी 
न दादी की थपकी 
न तारों से बातें 
न चंदा को ताने 
तितलियों के पीछे 
बोलो कौन भागे?
 
बस यादें बसी हैं 
धुंधली सी गाँव के 
बचपन की ।      
  

18 टिप्‍पणियां:

  1. बस्तों के बोझों से
    झुकते हुए कंधे
    न ममता की लोरी
    न दादी की थपकी
    न तारों से बातें
    न चंदा को ताने
    तितलियों के पीछे
    बोलो कौन भागे?

    वाह!!!!बहुत सुंदर बचपन यादे ताजा करती खुबशुरत रचना.....


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  2. अब ज़माना बदल गया है...क्या किया जाये...

    सुंदर तस्वीरें...सुंदर रचना...

    बधाई.

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  3. बस यादें बसी हैं
    धुंधली सी गाँव के
    बचपन की ।
    आज के समय कि वास्तविकता ....
    सुंदर रचना ...

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  4. बस यादें बसी हैं धुंधली सी गाँव के बचपन की । बहुत सुंदर प्रस्तुति,..

    MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: गजल.....

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  5. शानदार भावपूर्ण प्रस्तुति.
    अच्छा लगा आपको पढकर.

    मेरे ब्लॉग पर आपके आने का आभारी हूँ.

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  6. बेहद खूबसूरत ये यादों का सफर

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  7. सारगर्भित रचना । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

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  8. बचपन की मासूम यादों की बहुत ही प्यारी तस्वीर खींच दी है आपने संध्या जी...बहुत सुन्दर....

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  9. वे यादें जीवन की ..
    शुभकामनायें आपको !

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  10. इन यादों कों बाखूबी संजौया है आने शब्दों के माध्यम से ... लाजवाब ...

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  11. बहुत अच्छा लगा पढकर ! मेरे पोस्ट पर आपकी प्रतीक्षा रहेगी । धन्यवाद ।

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  12. बेहतरीन,सुन्दर रचना। आभार!

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  13. बहुत सुंदर प्रस्तुति .... अब वो बचपन कहाँ ... आज कल बच्चे अपने में ही रहते हैं ...

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  14. bachpane ki yaad dila di... Tasveeron ke sath kavita aur achhi lag rahi hai...

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  15. ये यादें ही तो जीवन हैं
    शुभकामनायें

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  16. शहरीकरण के कारण न सिर्फ परिवार टूटा बल्कि जिंदगी सिमट कर रह गई है. बहुत सुन्दर चित्रण, बधाई.

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