भागता बचपन
ब्लॉगर साथियों नमस्कार । कुछ दिनों तक मै आपसब से दूर रही । बहुत जगह घूमना हुआ और इसके साथ मैंने आज की पीढ़ी के बच्चों का अध्ययन भी किया । जिस समस्या को लेकर मै चल रही थी, वो था आज के बच्चो का बदलता व्यवहार । यह कोई समस्या नहीं है बल्कि आज की बदलती जिन्दगी के बीच बच्चों में भी परिवर्तन होना स्वाभाविक है । अब हम वैसे बच्चों को नहीं पाएंगे जो सिर्फ और सिर्फ बड़ों की छत्रछाया में रहें और उनके अनुसार ही चले । उनकी दुनिया भी हमारी तरह ही आगे भाग रही है बल्कि हमसे भी दो कदम आगे है । आज घर में पेन्ट कराना हो तो बच्चे ही रंग पसंद करते है , कोई गैजेट लेना हो तो सबसे पहले वे ही बताते है की लेटेस्ट क्या है ? कपड़ों से लेकर हमारे सभी पसंद पर बच्चे हावी हो गए है और हम उनपर बिलकुल निर्भर । यहाँ तक तो ठीक है , हम उनके तीव्र बुद्धि के कायल है , हमें अच्छा भी लगता है कि हमारे बच्चे अभी से ही हमारे सहायक हो गए हैं ।
हम बच्चों के हर फैसले को मानने लगे है लेकिन क्या बच्चे हमारे फैसले मान रहे है ? बिल्कुल नहीं और न ही उनमे आज्ञाकारिता का गुण ही नजर आता है । यह सही है कि सभी बच्चों पर यह लागु नहीं होती पर बहुतायत यही है । बच्चों को पॉकेट मनी अधिक चाहिए क्योंकि वे अपने दोस्तों से किसी भी हालत में कम नहीं रहना चाहते । माता पिता से अधिक उन्हें अपने दोस्तों कि बात अच्छी लगती है । यदि माता पिता उनके दोस्तों को नसीहत देते है तो वे इसे अपना अपमान समझने लगते हैं । दोस्तों के सामने उन्हें डांटना भी नागवार गुजरता है और इसके लिए भी अपने माता पिता से लड़ने लगते है । एक आठ वर्षीय लड़के की बात मै बताती हूँ जिसे उसकी मम्मी ने धूप में क्रिकेट खेलने से मना किया और उसे उसके दोस्तों के बीच ही डांट दिया । उसके बाद वो बच्चा अपनी माँ से लड़ पड़ा और इसी क्रम में कई घुसे भी माँ को जड़ दिए । क्रोध उसके अन्दर इतना था कि किसी की सुनने के लिए तैयार ही नहीं था । क्यों इतने उग्र होते जा रहें है आज के बच्चे ? वो संस्कार , वो बड़ो के आदर की परम्परा क्यों उनमे नहीं हो रही ?
दोस्तों के साथ पार्टी उनकी नयी चाहत बन गयी है। यह पार्टी भी कोई छोटी-मोटी नहीं होती बल्कि इसमें भी अपनी शान दिखाने की सोंच होती है । अब यदि उन्हें इसके लिए पैसे नहीं मिले तो घर में तूफान खड़ा हो जाता है । कैसे रोक लगेगी इन सब पर? हम अपनी जड़ों से दूर होते जा रहे हैं और हमारे बच्चे हमसे ही दूर होते जा रहे हैं । क्या इसके दोषी सिर्फ हम हैं ?
बिलकुल सही कहा आपने....बच्चों की मनोवृत्ति बदल गयी है....उग्र हो गए हैं बच्चे....
जवाब देंहटाएंहमें चाहिए कि बच्चों के साथ धीरज से काम लें...प्यार और सख्ती का संतुलन बहुत ज़रूरी है.....
बच्चों को दोस्त बनायें.....
उन्हें अपने फैनान्शियल स्तर का सही ज्ञान दें......
क्यूँकी अगर बच्चे गलत जा रहें हैं तो हमारे सिवा कौन दोषी है???????
सादर.
अनु
सही चिंता |
जवाब देंहटाएंप्रभु जी राह दिखाओ ||
सही चिंता |
जवाब देंहटाएंप्रभु जी राह दिखाओ ||
जिन बातों पर मां-बाप शुरू में इतराते हैं,उन्हें मुसीबत बनना ही था।
जवाब देंहटाएंविचारणीय आलेख है। अगर बच्चे हमारी ज़िम्मेदारी हैं तो कहीं न कहीं दोष भी हमारा ही है। आज्ञाकारिता की अपेक्षा जैसी सरल दिखने वाली भावना भी किसी मासूम के व्यक्तित्व की सृजनशीलता का हनन कर सकती है। आवश्यकता है कि माँ-बाप अपने को बच्चों का स्वामी नहीं संरक्षक समझें। बच्चों को समझदारी सिखाने के लिये खुद भी समझदार होना पड़ेगा।
जवाब देंहटाएंबच्चों को उतना ही प्यार दो जितना जरूरी हो,
जवाब देंहटाएंविचारणीय पोस्ट....
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...:गजल...
बहुत सही कहा है आपने इस आलेख में ... विचारणीय प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंbachhon ko arthik sthitiyon ko gyan karana bhi hamara dharm hai.
जवाब देंहटाएंआज के हालात में बच्चों को सही राह दिखाना टेढ़ी खीर है..कोशिश करते रहना चाहिए.
जवाब देंहटाएंआँखें खोलने में सक्षम आलेख.....
जवाब देंहटाएंविचारणीय पोस्ट
जवाब देंहटाएंsahi vichar hai sandhya ji
जवाब देंहटाएंबदलते माहोल में बच्चों की मनोवृति के साथ सब कुछ बदल रहा है ...
जवाब देंहटाएंआज के आधुनिक समाज में जहां पति-पत्नी दोनों काम करने वाले हों, छोटे बच्चों की देखरेख एक जटिल चुनौती बन गई है. ...
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही कहा..आज के परिवेश में बच्चों को सम्भालना बहुत मुश्किल है...
जवाब देंहटाएंबच्चों से जुड़ी बातों के विषय में समय रहते न चेतें तो मुश्किल ही होती है..... अपने सही विषय उठाया है...
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