मंगलवार, 28 फ़रवरी 2012

अनकही 

रह जाती है बहुत कुछ 
अनकही 
सुप्त, या फिर बेबस, बेचैन ,
शब्द बन जन्म लेते है 
जज्बात
मंथन गतिमान होता
उड़कर बाहर आने को आतुर  
व्याकुल 
होठों तक पहुँच काँप उठते 
फिर भी अनकही रह जाती ,
ख़ामोशी 
एक चादर तान देती 
और छिप कर रह जाते 
बहुत कुछ,
एक प्रयत्न पुन:
गतिमान 
शब्दों का निर्मित स्वरुप 
भावों की उड़ान
सागर की लहरों सा 
संघर्ष  
फिर भी रह जाती 
अनकही ।
  

15 टिप्‍पणियां:

  1. http://urvija.parikalpnaa.com/2012/02/blog-post_29.html

    meri email id - rasprabha@gmail.com

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  2. अनकही सी रचना भी बहुत कुछ कह गयी.....

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  3. आपकी पोस्ट चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें
    http://charchamanch.blogspot.com
    चर्चा मंच-805:चर्चाकार-दिलबाग विर्क>

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  4. मन के अन्दर जितना गुब्बार रहता है उतना निकलता कहाँ है..कुछ न कुछ अनकही रह ही जाती है..
    बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति..

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  5. रह जाती है बहुत कुछ
    अनकही
    सुप्त, या फिर बेबस, बेचैन ,
    शब्द बन जन्म लेते है
    जज्बात
    मंथन गतिमान होता
    उड़कर बाहर आने को आतुर
    व्याकुल
    होठों तक पहुँच काँप उठते
    फिर भी अनकही रह जाती ,
    ख़ामोशी
    बहुत अच्छी कविता बधाई और शुभकामनाएँ |

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत अच्छी रचना |होली पर हार्दिक शुभकामनाएं |
    आशा

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  7. सुन्दर! अनकही अभिव्यक्ति भी होती है

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  8. जो न कहा जाए,उसी में होती है संबंधों की गरिमा।

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  10. इस खामोशी के पार जाना बहुत कठिन होता है ... बदलना पढता है अपने आप को ...

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  11. बहुत सी रह जाती हैं अनकही .... सुंदर प्रस्तुति ॥

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  12. कुछ न कुछ तो रह ही जाता है. बहुत सुन्दर.

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