शनिवार, 18 फ़रवरी 2012



जीवन में सुख

 क्यों री कोयल 
तुम फिर कूकने लगी 
                        अमराइयों में
मदमस्त बावरी सी 
अपने प्रियतम
ऋतुराज वसंत को 
                     रिझाने में।


                           







सुध बुध खोयी तुम 
फिरती हो इधर- उधर चंचल सी 
कुहुक- कुहुक उठती हो छिपकर 
                             मंजरियों में 
तुम जानती हो, तेरा प्रियतम 
पुनः चला जायेगा तुम्हें छोड़कर        
                        इन्हीं फिजाओं  में 
तब तुम प्रेमोन्नत हो 
मौन हो जाओगी , पुनः उसके 
                               विरह में
 फिर भी जी लेना चाहती हो तुम 
 एक एक पल अनुरक्त होकर 
एक सीख देती हुई 
की जीवन में सुख है 
                             थोड़ा पाने में ।     

19 टिप्‍पणियां:

  1. APKE BLOG TK PAHLI BAR PAHUCH SAKA HOON ....BAHUT ACHHA LAGA ....

    तब तुम प्रेमोन्नत हो
    मौन हो जाओगी , पुनः उसके
    विरह में

    YATHARTH STHIYON KA SAFALTAM VIVECHAN KE SATH POORN ROOP SE ROCHAKATA KO SAMEJE HUYE ....PRABHAVSHALI RACHANA KE LIYE SADAR ABHAR TIWARI JI .

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  2. थोड़ा पाने का सुख ...अच्छा लगा ... आभार


    कृपया वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...

    वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
    डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो करें ..सेव करें ..बस हो गया .

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  3. बहुत सुन्दर और मृदुल है आपकी यह प्रस्तुति.
    सीख का कोमल अहसास कराती हुई .

    सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

    समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईएगा.

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  4. बहुत सुन्दर सृजन , बधाई.

    मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" की नवीनतम पोस्ट पर आप सादर आमंत्रित हैं.

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  5. बेहद सुन्दर भावाभिव्यक्ति और सीख .. उम्दा

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  6. एक सीख देती हुई
    की जीवन में सुख है
    थोड़ा पाने में ।

    Bahut Hi Sunder

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  7. सुन्दर..
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति.....

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  8. संध्या जी ...बहुत आभार आपका... आप मेरे ब्लॉग पर आयीं ....आपका स्वागत है ...!!आपके विचार ,आपकी रचना पढ़कर बहुत अच्छा लगा |बड़ी ही कोमलता से आपने अपने विचारों को प्रकट किया है ...बधाई एवं शुभकामनायें .....मुझे उम्मीद है हम एक दूसरे की रचनाओं को पढ़ते रहेंगे अब ....!!

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  9. कल शनिवार , 25/02/2012 को आपकी पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .

    धन्यवाद!

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  10. पुनः चला जायेगा तुम्हें छोड़कर
    इन्हीं फिजाओं में
    तब तुम प्रेमोन्नत हो
    मौन हो जाओगी , पुनः उसके

    विरह में
    फिर भी जी लेना चाहती हो तुम
    एक एक पल अनुरक्त होकर
    एक सीख देती हुई
    की जीवन में सुख है
    थोड़ा पाने में । ... बिल्कुल

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  11. एक एक पल अनुरक्त होकर
    एक सीख देती हुई
    की जीवन में सुख है
    थोड़ा पाने में ।

    बहुत सुन्दर विचार

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  12. बहूत हि सुंदर प्रस्तुती..
    बेहतरीन भाव अभिव्यक्ती...

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