रविवार, 25 सितंबर 2011

      औरतों के  लिए लोकतान्त्रिक देश बेहतर 


यह विचार है अन्तराष्ट्रीय  पत्रिका ''न्यूजवीक'' का जिसने महिलाओं  की प्रगति पर अपनी वश्विक  रिपोर्ट जारी   की  है. रिपोर्ट   से अलग हटकर अगर देखा जय तो ये बिलकुल  सही  है कि महिलाएं   आगे   बढ़  रही हैं और  दे  रही हैं चुनौतियाँ  कि ''अब  हमारे  कदम  रुकने वाले  नहीं  हैं, रोक  सको  तो रोक लो . '' समय   तो काफी  लगा संघर्षमय जीवन  को  तराश  कर  अपनी पहचान बनाने में लेकिन जब पहचान बनी तो उभर  कर आई राष्ट्रपति , प्रधानमंत्री , विदेशमंत्री  , अन्तराष्ट्रीय मुद्राकोष  की अध्यक्छ  जैसे  विशिष्ट  पदों के रूप में. अनेकों महिलाओं ने ''स्वय्मसिद्धा''  बन कर  अपने सामर्थ्य  का लोहा समाज से मनवा दिया .

कितना समय और कितनी आलोचनाएँ सहनी पड़ी होंगी  पाकिस्तान की विदेशमंत्री हिना रब्बानी खार को यहाँ तक पहुँचने में क्योंकि वो ऐसे देश का प्रतिनिधित्व करती हैं जहाँ औरतों पर जुल्म जग जाहिर है और सामाजिक  मान्यता उन्हें  बच्चे पैदा करने वाली मशीन से अधिक कुछ नहीं समझता है . फिर भी उन्होंने समाज के सामने आदर्श प्रस्तुत कर अन्य महिलों के लिए भी रास्ता खोल दिया है . समाज की सोंच बदलने पर मजबूर कर दिया है. 

न्यूजवीक ने चाहे जैसे भी अपनी रिपोर्ट तैयार की हो लेकिन महिलएं किस तरह तरक्की कर रही हैं , यह रिपोर्ट तो उनके पास है जो महिला हैं और जो रिपोर्ट का हिस्सा बने या न बने लगातार बाधाओं  को पार करने में मशगुल हैं. 

कौन जनता था की 50 प्रतिशत आरक्षण  मिलने के बाद बिहार में महिलाओं का राज होने लगेगा . मुखिया के पद जहाँ पुरुषों के लिए निश्चित थे वहां महिलाएं शोभायण होंगी . येही है बदलाव  जो शहरी के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों में भी अधिक रूप से हो रही है और लोकतंत्र को मजबूत कर रही हैं .

लैंगिक भेदभाव ने यहाँ दम तोडना शुरू कर दिया है और विकाश अपनी गति पर है . उन पिछड़े तबके की लड़कियां  भी साईकिल से स्कुल जा रही हैं जो कभी खेतों और घरों के काम तक ही सिमित थी . जो समाज उन्हें घर की चाहरदीवारी में कैद रखता था , आज वाही समाज उन्हें स्कुल जाते, नौकरी करते बड़े गर्व से देख रहा है और अब चर्चा का विषय उनके बढते कदम बन गए  हैं. सास बहु की shikayten दम तोड़ रही हैं और बन  रहा है एक नया अध्याय जो rajniti से लेकर व्यापर  और गृहस्थी को भी एक नए आयाम के रूप में प्रस्तुत कर रहा है.


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