शनिवार, 1 जनवरी 2011

                      शब्द तो है लेकिन वाणी नहीं है 

काश कि वक्त ठहर पाता. बहुत सारी उम्मीदे थी लेकिन अधूरी रह गयी. पता नहीं क्यों समय को भागने नहीं देना चाहती . संभव तो नहीं है यह सब फिर भी कुछ शिकायतें रह जाती हैं . मैं खुद से हमेशा यही  बोलती हूँ  कि  ए जिन्दगी तु आगे बढ़ रास्ते और भी हैं . मंजिलें और भी हैं . एक  कदम आगे तो बढ़ा. मंजिल जरुर मिलेगी. 
                      उम्मीदों के साथ नए साल का स्वागत करने मैं भी पहुँच गयी वहां जहाँ लगी थी बच्चों की कला की प्रदर्शनी . काफी अच्छा लग रहा था मुझे लेकिन एक बच्ची की कला ने मुझे वही तक सीमित कर दिया जहाँ वो थी. मै पूछ उठी कुछ अपनी पेंटिंग के बारे में तो बताओ . कागज पर वह लिखती है "शब्द तो बहुत हैं  पर वाणी नहीं है." मेरी नजरें उसके चेहरे पर ही टिक गयी लेकिन वह न तो विचलित हुयी और न ही उदास. समझौता  कर  चुकी थी खुद से . उसकी हिम्मत ने मुझे नयी उर्जा से भर दी कि बुलंद हौसले सफलता कि नयी कहानी जरुर लिखते हैं .

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