शुक्रवार, 24 सितंबर 2010

आदि देव शिव एवं उनका संप्रदाय

सनातन वैदिक देवताओं में शिव आदि देव मने जाते है, क्योंकि सिन्धु घटी सभ्यता के अवशेषों में बहुत सी ऐसी मुद्राएँ मिली हैं जिसमे एक ऐसे देवता की प्रतिमा अंकित है जिसके तीन मुख है और जिसके सिर पर सिंग बनाये गए हैं । इस प्रतिमा के चारो ओर हिरन, हाथी, गैंडा , भैस, और शेर अंकित है । विद्वानों द्वारा इस प्रतिमा की कल्पना पशुपति शिव के रूप में की गयी है , जिसकी पूजा सैन्धव कल में प्रचलित थी और जिसे कालांतर में आर्य जाति ने भी अपना लिया । अतः शिव को सर्वाधिक प्राचीन देवता माना जाता है।
वैदिक साहित्य में शिव के लिए "रूद्र" और "शिव" दोनों नामो का उल्लेख मिलता है । "रूद्र" उनके भीषण या रौद्र रूप को प्रकट करने के लिए और "शिव" उनके कल्याणकारी रूप के लिए कहा गया है।

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