रविवार, 23 फ़रवरी 2014

                                   ले आयी वसंत 

मुझे लगा वसंत मेरे घर इस बार नहीं आएगा ………मेरी दहलीज  से पार कर जायेगा और मैं यूँ ही मौन बैठी रह जाऊँगी ................... पर हार नहीं मानी ,..........  ले आयी अपने घर हौले से खुशियां भर देने की  उम्मीद के साथ.……… अपने उदास मन में पुनः स्फूर्ति भर देने के लिए ………बोल आयी कोयल को कुहुकने के लिए अपनी अमराइयों में ………जहाँ निकल आयी मंजरियाँ थिरकने को तैयार बैठी बस कोयल की  मधुर तान और  उनका झूम उठना ……… यही तो है जीवन का संचार और मैं बैठ गयी थी मौन ……… बना लिया था एक सीमीत दायरा ................ नहीं सुन पा रही थी बावरे वसंत की आह्ट ………… दरवाजे पर उसकी दस्तक ………… बगीचे में खिले रंगीन फूलों के बीच से सर्र से उसका निकलना ……… और मेरे खुले लम्बे बालों को छेड़ना ………मेरी खोयी हँसी .......... ले आयी वसंत ...................... . । 






13 टिप्‍पणियां:

  1. वाह ! कितना सुंदर है जीवन में बसंत का आना... हरेक के जीवन में यह वसंत आ सकता है, कोयल की कूक और अमराइयों की सुगंध भर जाये जब बाहर तो कैसे रह सकता है अनछुआ भीतर का स्वर..

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  2. अब तो बसंत आ गया न .... ह्रदय में उमड़ते.. घुमड़ते....

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  3. यही हौसल रहे ..... जो पाने की इच्छा हो उसे पा कर ही दम लें .

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    1. धन्यवाद ..........आप सभी का साथ बना रहे तो मन सारे दुःख भूल जाता है ............

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  4. ऐसा हो ही नहीं सकता वसंत किसी को बिना मोहित किए गुजर जाये ....बहुत खुशी हुई ....

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  5. बसंत तो आता ही है .. कई बार हमारी नज़रें उसे नहीं देख पाती हैं ....
    सुन्दर चित्र और भाव ...

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  6. हार नहीं मानना और उम्मीद का दामन नहीं छोड़ना, गुज़रे हुये बसंत को भी दुबारा खींच लाता है... यह तो आसन्न बसंत हैओ, आता कैसे नहीं!! एक शोख़ी जो इस रचना में है, वही इसकी सबसे बड़ी ख़ासियत है!!

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  7. और सबमें जिला भी दिया बसंत को.. अति सुन्दर..

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  8. हमारे चाहने भर की देर होती है बसंत को आना ही है.... बहुत सुंदर रचना ...!

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