बुधवार, 10 अक्तूबर 2012

आरोप-प्रत्यारोप की घिनौनी राजनीति

                       आरोप-प्रत्यारोप की घिनौनी राजनीति 





एक - दूसरे के खिलाफ बयानबाजी , आरोपों - प्रत्यारोपों  से भरी भारतीय राजनीति  किस ओर जा रही है, ,पता नहीं । इन दिशाहीन राजनीतिज्ञों ने भारतीय राजनीति  को बिल्कुल गन्दा कर दिया है । हर कोई इसी तलाश में है कि उसके विरोधी के खिलाफ कुछ सबूत  मिल जाय और उसकी लुटिया राजनीति में डूब जाय , खूब छीछालेदर हो तथा राजनीति के शिखर से ऐसा निचे गिरे कि जनता के सामने मुँह दिखाने के लायक न रहे ।
              वास्तव में आज किसी को भी दूध का धुला नहीं कहा जा सकता है । राजनीति में अपनी पहुँच बनाते ही दो कौड़ी के नेताजी अरबों के मालिक बन बैठते हैं । परिवार का रहन-सहन , घर-मकान सभी कुछ आलिशान । पैदल चलने वाले नेताजी के पाँव अब जमीं पर नहीं पड़ते और उनके परिवार वाले चाँदी  काटतें हैं सो अलग ।
              नेताजी के सरकार में आते ही उनके समर्थक लाभ लेने के लिए हर जुगत भिड़ाते रहते हैं और अगर नेताजी इससे मुकर गए तो समझो अगला चुनाव उनके लिए भारी पड़  गया । हर हाल में उन्हें भी जुगत भिड़ानी पड़ती है और उनकी यही जुगत यदि विरोधी के हाथों लग गयी तो नेताजी जनता के आगे रोज - रोज नई -नई कहानियों के साथ बेपर्दा होते जाते हैं । इस काम में मीडिया की भूमिका सबसे अहम् हो जाती है, क्योंकि मसालेदार न्यूज को कितने मसाले और डालकर जनता के सामने परोसना है ये बखूबी आता है उन्हें ।
             भले ही अरविन्द केजरीवाल पोल खोल की राजनीति में लगे हैं , लेकिन जब वे जनता के पास वोट मांगने जायेंगे तो जनता भी उन्हें महात्मा बनाकर पूजने वाली नहीं है । वही दौर शुरू  होगा फिर से जब उन्हें वोट दिलाने वाले, उनके सत्ता में आते ही लाभ कमाने के लिए चक्कर काटने लगेंगे । न चाहते हुए भी उन्हें कहीं  न कहीं कुछ कदम बढ़ाने  ही पड़ेंगे और यदि अनजाने में भी कोई गलती हुई तो फिर से उनकी भी वही हालत होगी , जहाँ से उठे थे वहीं धड़ाम से गिरना पड़ेगा ।
                      अतः देश को यदि आगे बढ़ाना है और राजनीति करनी है तो उन रास्तों पर बढ़ना होगा जिससे देश की तरक्की हो । किसने क्या किया, यदि हम यही सोंचते रह गए तो देश का क्या होगा?

14 टिप्‍पणियां:

  1. कुर्सी पर निगाह कुछ भी करा सकती है ...
    अच्छा लिखते हो !
    बधाई !

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  2. बहुत सार्थक आलेख...देश की चिंता किसी को नहीं है, सब किसी तरह एक दूसरे को नीचे गिरा कर कुर्सी की ओर बढ़ना चाहते हैं..शुभकामनायें!

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  3. आपका संदेह जायज है. किसी पर भी अब विश्वास करना मुश्किल है.

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  4. आदरणीया डॉ संध्या जी सटीक ...हर बार इतना चिल्लाते समझाते लोगों को जगाते गला बैठ जाता है लेकिन वे फिर चुन के पहुँच जाते हैं और फिर वही ढाक के तीन पात ...
    अच्छा लेख देखिये आगे आगे होता है क्या
    जय श्री राधे
    भ्रमर ५

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  5. आम आदमी के पास केवल दो विकल्प होते हैं भ्रष्ट और कम भ्रष्ट में से किसी एक को चुनना ---लेख अच्छा लगा संध्या जी

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  6. आज की हकीकत को आइना दिखाती सशक्त पोस्ट
    बहुत बढिया
    शुभकामनाएं

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  7. क्या करना चाहिए इससे ज्यादा आज इस बात पर ज्यादा जोर है कि किसने क्या किया. कोई भी नेता ईमानदार नहीं है. जैसे ही कुर्सी मिलती सारी इमानदारी खत्म और लग जाते अपनी कुर्सी बचाने और कुर्सी रहते तक कई पुश्तों के लिए संपत्ति जमा करने. जैसे मौक़ा मिलता दूसरे का पोल खोलना और खुद को सबसे ज्यादा ईमानदार साबित करना; एक नया चलन बन गया है.
    आपका लेख बहुत अच्छा लगा, शुभकामनाएँ.

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  8. आज एक सीरियल देख रही थी , उसमें एक वाक्य था " राजनीति का मतलब भाई - बहन , माता - पिता , नाते-रिश्तेदार नहीं होता , राजनीति में सिर्फ जय और पराजय होती है और उसके लिए कुछ भी किया जा सकता है "
    आपका लेख पढ़ कर यह वाक्य याद आ गया ....आपने सही कहा है कि उन रास्तों पर आगे बढ़ना होगा जहाँ से देश की तरक्की हो .....

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  9. आलेख बहुत ही अच्छा लगा। धन्यवाद।

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  10. यही होता रहा है यही होता रहेगा ..... दुखद है पर सच है

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  11. बहुत अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति

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