स्कूलों की मनमानी
स्कूलों में नामांकन की प्रक्रिया शुरू हो गयी है और इसी के साथ माता पिता की परेशानी भी. पब्लिक स्कूलों में माता पिता को भी गुजरना पड़ता है परीक्षा के दौर से और यदि उनकी डिग्री कम रही तो शर्मिंदगी भी उठानी पड़ती है . मुझे तो ताज्जुब होता है उन भारतीय इसाइयों पर जो खुद को अंग्रेजों की संतान समझते है और हिदी भाषी मातापिता को हीन नजरों से देखते हैं . मेरे पड़ोस के कुशाग्र बुद्धि के बच्चे का नामांकन प्रतिष्ठित स्कुल में इस वजह से नहीं हो सका क्योंकि उसके माता पिता को अंग्रेजी का ज्ञान नहीं था . काफी दुःख हुवा ये जानकर मुझे. मोटी रकम तो वसूल करते ही है ये स्कुल ऊपर से रोज नए नियम निकाल बच्चों के माता पिता से पैसे भी लेते रहते है .उनकी बढती फीस और स्कुल से ही पुस्तकों को खरीदने की मज़बूरी , क्या ये अभिभावकों का शोषण करना नहीं हुआ?
हलाकि गलती हमारी भी है, हम आँख मूदकर इन स्कूलों के पीछे भागते रहते हैं , तो इनकी मनमानी भी सहनी पड़ती है क्योंकि हम ही इन्हे शह भी देते है . हम स्टेटस के पीछे भागते हुए अपने बच्चे के साथ अन्याय करते हैं और खुद भी मानसिक तनाव में जीते हैं . कंधो पर बस्तों का बोझ बच्चों को झुकता जा रहा है और फीस का बोझ हमें झुकता जा रहा है. काश की हम मिलकर जाग जाएँ अपने बच्चों के लिए .
आपकी बातों से मैं पूर्णतया सहमत हूँ संध्या जी.
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आप आयीं,इसके लिए हार्दिक आभार आपका.
आना जाना बनाये रखियेगा जी.
आपका पांचवां फालोअर बनते हुए मुझे खुशी हो रही है.
जवाब देंहटाएंक्या आप भी मेरे ब्लॉग का फालोअर बनना चाहेंगीं?