सोमवार, 22 नवंबर 2010

जीवन एक आशा

हम सभी जीवन जीते हैं, अपनी सोंच, अपने अतीत और अपने भविष्य कि कल्पना के साथ। प्राप्ति और अप्राप्ति का लेखा जोखा भी हमारे साथ ही चलता रहता है तथा हमारा मन यह सोंचता रहता है कि हमने क्या पाया और क्या खोया ?पाने पर जितनी ख़ुशी होती है, खोने पर उतना ही दुःख और उसी के साथ चिंतन भी बढ़ जाता है।
इन सब से अलग यदि हम आशावादी सोंच रखे तो जीवन सचमुच चिरयौवन ही बना रहेगा। न खोने का डर होगा और न पाने की लालसा, बस एक आनंद की अनुभूति, उल्लास का अनुभव तत्पश्चात अप्रतिम शक्ति। आशा मानसिक थकान को मन के द्वार तक आने नहीं देती। यह शारीरिक उर्जा में परिवर्तित होकर थकान को मिटाती है।
आशा सर्वोतम ज्योति: ।
निराशाया: समम पापम मानवस्य न विद्यते ।
ता समूलं समुत्सर्य हयाशावाद परो भव । ।
अर्थात आशा सर्वोतम ज्योति है और निराशा के समान दूसरा पाप नहीं है , अतः मनुष्य को चाहिए कि वह पाप रूपी निराशा को समूल हटा कर उसे नष्ट कर दे । मनुष्य की सारी उन्नति , जीवन की सफलता और सृष्टी की चरितार्थता आशा में ही प्रतिष्ठित है।

1 टिप्पणी:

  1. खूब आशावादी पोस्ट. अपने आप को इसी प्रकार आशावादी बनायें रखें. लिखती रहें.

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