मंगलवार, 17 जुलाई 2012

अस्तित्व

अस्तित्व 

मैं स्वयं में '' मैं '' को तलाश रही थी 
पर मेरा '' मैं '' कब का हम बन चुका  था 
जुड़ चुका था रिश्तों की डोर से 
बंध  चुका था अपनों की ओर  से 
निकलने की तड़प बार-बार उठती 
फिर दबी रह जाती अपनों की शोर में 
टूटते और बनते सपने 
उड़ान भरती आशाएं 
दुर गगन को छूने की चाहत 
पर पुनः रोकती बाधाएँ  
बाँध लेती रिश्तों की डोर में 
खोजती रह जाती मैं  उनमें 
अपने अस्तित्व को................

सोमवार, 9 जुलाई 2012

एक संस्मरण शिव के धाम का

            एक संस्मरण शिव के धाम का

शिव की महिमा अपरम्पार है . मुझे भी मौका लगा सावन में भोले भंडारी के दर्शन का  और उठा ली इस शुभ अवसर का लाभ .  कोई तीन  साल पहले की बात है . मेरे पति बोले चलो इस बार तुमको भी सावन में बासुकीनाथ धाम ले चलते हैं , चूकि वे हर साल गाड़ी से अपने दोस्तों के साथ बाबा को जलार्पण करने जाते हैं लेकिन मैं कभी भी उनके साथ  नहीं जा पायी थी सो वे मुझे भी इस बार अपने साथ ले गए . इस बार सिर्फ हमदोनो ही साथ गए . बासुकीनाथ धाम  झारखण्ड के दुमका जिले में है . लाखों लोग उत्तरवाहिनी  का जल भागलपुर से भरते हैं और पैदल ही यात्रा करते हैं . ऐसी मान्यता है कि देवघर अर्थात बाबाधाम में अपने मन्नतों की अर्जी लगाने के बाद बासुकीनाथ  बाबा के पास अवश्य जाना  पड़ता है क्योंकि  ये फौजदारी बाबा  कहे जाते है.  भक्त की अर्जी तुरंत सुनते हैं. कई लोग तो ऐसे हैं जो बाबा के द्वारे धरना  देते हैं और अपनी मन्नत   पूरी होने के बाद ही वापस जाते हैं .धरना देने वाले भक्त दिन भर फलाहार पर रहते हैं और शाम की आरती के बाद अरवा भोजन करते हैं तथा अपना सारा समय बाबा की आराधना और मंदिर परिसर की सफाई में बिताते हैं .ऐसे  भक्तों को बाबा स्वप्न के माध्यम से उनकी मन्नत पूरी होने का आशीर्वाद देते हैं और यदि उनकी मन्नत पूरी नहीं करनी होती तो वापस जाने का आदेश भी स्वप्न के  माध्यम से ही दे देते हैं. मेरे परिचित एक ऐसे ही व्यक्ति थे (अभी हाल ही में उनका निधन हुआ है ) जिन्होंने बाबा के द्वारे धरना दिया था , चूकि वे स्वयं दोषी थे और अपनी रक्षा के लिए ही बाबा द्वारे गए थे , परन्तु बाबा ने उन्हें स्वप्न में वापस जाने का आदेश दे दिया .उन्होंने जब ये बात मुझे बताई तो मैं अचंभित हो गयी .  अपनी गलती की सजा उनको भुगतनी पड़ी . बाबा का न्याय देखकर मुझे बहुत ही आश्चर्य हुआ . 
               भोले  बाबा  की कृपा से मैं भी सावन में उनके द्वार पहुँच गयी . भीड़ इतनी थी कि बिछड़ने के बाद मिलना असंभव  जान पड़ता, चारो और केसरिया वस्त्र धारण किये लोग ही दिख रहे थे . महिलाएं भी इसी रंग में रंगी थी . मैं हलके नीले रंग की साड़ी में थी और मुझे काफीअफसोस हो  रहा था कि मैंने केसरिया रंग की साड़ी  क्यों  नहीं पहनी , शायद बाबा की यही मर्जी थी . इतनी लम्बी लाइन  लगी थी  कि  दर्शन असंभव लग रहा था .महिलाओं की लाइन थोड़ी छोटी थी फिर भी भीड़ में जाने में मुझे बहुत डर  लग रहा था। मेरे पति तो भीड़ की वजह से मंदिर परिसर से बाहर ही खड़े रहे और  मैं महिलाओं की लाइन के पास जाकर खड़ी हो गयी . इतनी लम्बी लाइन देखकर मेरे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ . मन ही मन  बाबा से प्रार्थना करने लगी कि मुझे दर्शन दे , बिना दर्शन के वापस न लौटाएं . अचानक एक सिपाही आया  और मुझे आगे ले जाकर महिलाओं  की लाइन में लगा दिया . मुझसे आगे सिर्फ आठ या दस महिलाएं होंगी . सिपाही मुझे मैडम कहकर संबोधित कर रहा था शायद इसीलिए अन्य महिलाओं ने मेरे आगे लाइन में लगने का विरोध नहीं किया .तभी भगदड़ मची और मेरे आगे की महिलाएं एक-दूसरे पर गिर पड़ी .मैं डर गयी और लाइन से निकलकर खड़ी हो गयी, तब वही सिपाही फिर आया और मुझे फिर से लाइन में लगा दिया . बाबा  मंदिर में मैं प्रवेश कर गयी और बाबा को जल चढाते हुए लगातार रोये जा रही थी . मेरा दिमाग एकदम शून्य हो गया था , कुछ  याद नहीं था कि मैं कहाँ हूँ और कौन हूँ ? वो तो एक महिला मेरा हाथ पकड़कर  मुझे बाहर ले आई , फिर पार्वती जी की पूजा करने गयी लेकिन मेरे पास चढाने के लिए न तो तो  जल था और न ही फूल , क्योकि सब मैं बाबा को ही चढ़ा दी थी . मैं चुपचाप खड़ी थी तभी एक  महिला आई  जो दूध बेच रही थी . उसने मेरे लोटे में दूध डाल दिया और  साथ में फूल भी . इसके लिए उसने मुझसे पैसे भी नहीं लिए . पता नहीं यह माता की कृपा थी या संयोग , मैं तो बस विवेकहीन हो सिर्फ पूजा में मगन थी , वो भी सब कुछ यंत्रवत था मानो माता स्वयं मुझसे सब  रही हैं .बहुत ही अदभूत अनुभव  था वह ,जो वास्तव में अवर्णीय है . मैं इसके बाद भी कई बार बासुकीनाथ गयी लेकिन वो अनुभूति नहीं पा सकी .
                   मैं अपने अनुभव से यह जरुर बोल सकती हूँ कि सावन में बाबा स्वयं विराजमान होते हैं और अपने भक्तों की पूजा अवश्य स्वीकार करते हैं .

बुधवार, 4 जुलाई 2012

सावन का पावन मास शिव का प्रिय मास

      सावन  का पावन मास शिव का प्रिय मास 


शिव देवों के देव अर्थात महादेव इनकी महिमा अपरम्पार है .  इनके शाश्वत स्वरुप का वर्णन अनंत है , जिसकी कोई सीमा नहीं है और हम इनके स्वरुप की जितनी गहराई में गोता लगाते हैं उतनी ही गहराई  में डूबते  जाते हैं . जिस अभूतपूर्व शांति को हम पाते हैं वो शिवमय होने के बाद ही मिलती है . आत्मा की शुद्धता और प्रेम  यही तो है जो हमें सुगमतापूर्वक उनके पास पहुंचाती है , भले ही मार्ग पथरीला हो पर फूल बिछे ही महसूस होते हैं और हम बाबा के द्वारे होते हैं बिलकुल उनकी भक्ति  में डूबे .  सुध कहाँ होती है किसी और बात की , मन तो बस बाबा में ही लगा होता है .
           बड़ा प्रिय लगता है बाबा को सावन मास क्योंकि समुद्र मंथन के पश्चात् विश्व की रक्षा हेतु हलाहल विषपान करना  पड़ा था और  इसके पश्चात् शीतलता इसी मास में मिलती है उन्हें , जब झमाझम बारिश से धरती शीतल बन जाती  है , चारो ओर  हरियाली छा जाती है तब भक्त भला पीछे क्यों रहें , वे भी उनका जलाभिषेक कर असीम कृपा प्राप्त करते हैं . शिव को प्रसन्न करने के लिए नाना कष्ट झेलते हुए भी उनके द्वार बोलबम का नारा लगाते  हुए पहुँच जाते हैं . कहा जाता है कि पार्वती को  भी शिव को प्रसन्न करने के लिए इसी माह कठोर साधना करना  पड़ा था तब जा कर भोले भंडारी उनके हुए .
                भगवन शिव का एक नाम  ''आशुतोष'' भी है जिसका अर्थ है ''आशु: तुष्यति इति आशुतोष:'' अर्थात जो अतिशीघ्र संतुष्ट हो जाय, वही शिव हैं. शिव के सहस्त्र  नामों का जप आत्मिक शुद्धि से करने वाला उनके सर्वाधिक सन्निकट पहुँच जाता  है और इसका अनुभव वह स्वयं ही कर सकता है .