शनिवार, 12 मई 2012

          व्यथा 

 एक दर्द है  छिपा हुआ 
टीस उठती है बार-बार 
वेदना होती है भीतर तक 
स्पष्ट लकीरें चेहरे पर 
बाहर आने को फड़फड़ाते होठ 
पर गिर पड़े दो बूंद आंसू के 
और  बह गए दर्द 
पुन : दबी रह गयी व्यथा ।