सोमवार, 27 सितंबर 2010

शिव जब दुष्टो का दमन तथा सृष्टी का प्रलय करते है तो रूद्र रूप धारण कर लेते हैं और जब वही देवता सृष्टी का पालन और धारण करते है तो "शिव" या "शंकर" कहलाते है। ऋग्वेद के एक मन्त्र में प्रार्थना की गयी है-
"हे रूद्र ! क्रोध वश आप हमारे बच्चों, वंशजो , पशुओं और अश्वो का विनाश न करो। हम हविशों के साथ तुम्हारा आवाहन करते है ।

शुक्रवार, 24 सितंबर 2010

आदि देव शिव एवं उनका संप्रदाय

सनातन वैदिक देवताओं में शिव आदि देव मने जाते है, क्योंकि सिन्धु घटी सभ्यता के अवशेषों में बहुत सी ऐसी मुद्राएँ मिली हैं जिसमे एक ऐसे देवता की प्रतिमा अंकित है जिसके तीन मुख है और जिसके सिर पर सिंग बनाये गए हैं । इस प्रतिमा के चारो ओर हिरन, हाथी, गैंडा , भैस, और शेर अंकित है । विद्वानों द्वारा इस प्रतिमा की कल्पना पशुपति शिव के रूप में की गयी है , जिसकी पूजा सैन्धव कल में प्रचलित थी और जिसे कालांतर में आर्य जाति ने भी अपना लिया । अतः शिव को सर्वाधिक प्राचीन देवता माना जाता है।
वैदिक साहित्य में शिव के लिए "रूद्र" और "शिव" दोनों नामो का उल्लेख मिलता है । "रूद्र" उनके भीषण या रौद्र रूप को प्रकट करने के लिए और "शिव" उनके कल्याणकारी रूप के लिए कहा गया है।

रविवार, 19 सितंबर 2010

सूरज की तपती गर्मी से
सूखी धरती सारी
फिर बारिश की बूंदों से
चहुँ ओर हुई हरियाली
हरी हरी बगिया में फिर से
उड़ती तितली रानी
और किसानो ने फिर से
खेतो में बीज बिछाई
काले काले मेघो से
बच्चो ने आस लगायी
और लिए कागज की कश्ती
फिर से दौड़ लगायी